Monday, December 05, 2005

 

मारवाड़ी कहावतें

कहावतें और मुहावरे जीवन की वास्तविकताओं का दर्पण होती हैं। राजस्थानी कहावतों ने भी जीवन को बहुत ही सच्चाई के साथ परिभाषित किया है।

१ हाथ पोलो तो जगत गोलो
२ सात मामा को भांणजो ज्यूं आवै ज्यूं जाय
३ पराई पीड़ परदेस बराबर होवै
४ बेटी की माँ राणी, बुढापै भरै पाणी
५ घर मै सारो बायाँ को घर बिगाड़ै भायाँ को
६ तू ही राणी मैं ही राणी कुण घालै चुल्लै मै छाणी
७ बिल्ली कै भाग को छीको टुटै ही टुटै
८ उल्टो चोर कोतवाल नै डाँटै
९ माँ सरायां पूत कोनी सरै, लोग सरायां सरै
१० घर का पूत कुंवारा डोलै, पड़ोस्यां रा फ़ेरा करै
११ कुल्हड़ी मै गुड़ फ़ोड़णो
१२ काठ की हांडी एक बार ही चढै बार बार कोनी
१३ पाव की हांडी ओर पाँच सेर उरणो
१४ राई को पहाड़ बणाणो
१५ कुहणी मै गुड़ लगाणो
१६ पूत का पग पालनै ही पिछाणि जै
१७ खाक मै बेटो, बेटो बेटो करती फ़िरै
१८ आप की रोट्यां हेटै खीरा देवै
१९ भागतै चोर का झींटा ही चोखा
२० ठोलै की देवै जिको मुक्कै की खावै
२१ आँधो पीसै कुत्तो खावै, पापी को धन परलै जावै
२२ पापड़ करया ना पापड़ी, बहू दड़कै दे आ पड़ी
२३ आप मरयां बिना स्वर्ग कोनी मिलै
२४ खाडो खिणै सो पड़ै, जैर खावै सो मरै
२५ गुड़ खावै, गुड़ियाणी अपच करै!
२६ मन मन भावै मूंड हिलावै
२७ जण जण का मन राखती वैश्या रैगी बांझ
२८ खोटो पीसो - कपूत बेटो, ओडी बकत मै आडो आवै
२९ जिसो खावै अन बिसो होवै मन
३० पाणी पीणो छाण कै सगपण करणो जाण कै
३१ ऊंदरै कै जायै नै बिल खोदणो ही पड़ै
३२ म्हे बड्डा गळी संकड़ी
३३ अड़ो दड़ो सो बूढ़ळी पै पड़ो
३४ बूढ़ळी कै कयाँ कुण पापड़ बेलै
३५ गुड़ देकै जी ल्याणो
३६ बीन कै मूं मै जद लार पड़ै तो जानी बिचारा के करै
३७ खावै पीवै खसम का, गीत गावै बीरै का
३८ घर मै तेल न ताई रांड मरै गुलगुलाई
३९ घर की खांड किरकिरी लागै बारै को गुड़ मीठो
४० डागळ चढ़ कै देखो घर घर एक ही लेखो
४१ आप गुरूजी बैंगण खावै दूसरां ना सीख देवै
४२ घर मै सीख जिठानी की बारै सीख पड़ोसण की
४३ कोई पूछै ना ताछै झुट्यां ही लाडै की भुआ बणै
४४ सीख शरीरा ऊपजै दीया लागै डाम
४५ मन बिना का पावणां तनै घी घालूं कि तेल
४६ आँख्या देखी मानणी कानां सुणी जानणी
४७ पल्ली सोचो पछै बोलो
४८ फ़ूड़ चालै नौ घर हालै
४९ बिना मन का पांवणा तनै घी घालूं कि तेल
५० घर हाण लोकां हांसी
५१ जाट जंवाई भाणजा रेवारी सुनार कदै ना होसी आपरा करसी खेवो पार
५२ सराई खीचड़ी दाँताँ कै चिप ज्या
५३ ?? घी घणाँ मुट्ठी चणां
५४ नौ हाथ की काकड़ी तेरह हाथ को बीज

Comments:
wow.....great man.....thanks for this
 
दिल खुश कर दिया ऐसी कहावतें कहां सुनने को पङी थक
 
वाह,,,,
मेरा मारवाड़ तो मारवाड़ हैं।।।
बहुत ही बढ़िया कहावतें हैं।।
Vvv nice
 
Bahut hi sunder prstuti...

 
छोटे शब्दों में जीवन की वास्तविक सच्चाईयांं
 
wow
 
Very nice 👌👍
 
Nice
 
चोखो लाग्यो पढक।

 
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